Teacher Eligibility Test (TET) को लेकर चल रहे विवाद में अहम घटनाक्रम सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2025 को सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों को पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए TET Mandatory बनाने के अपने फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को बड़ी पीठ के पास भेज दिया है। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि इस मामले में कई कानूनी सवाल और पहलू हैं, इसलिए इसे चीफ जस्टिस के पास भेजा जा रहा है ताकि बड़ी पीठ गठित की जा सके।
Teacher Eligibility Test : 1 सितंबर के ऐतिहासिक फैसले का संक्षेप
सुप्रीम कोर्ट ने 1 सितंबर 2025 को जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ के माध्यम से ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। इस फैसले के अनुसार, देशभर में कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों के लिए TET पास करना अनिवार्य कर दिया गया था। यह नियम 2011 के बाद नियुक्त और उससे पहले नियुक्त सभी शिक्षकों पर लागू होता है।

TET नियमों की मुख्य बातें
- दो साल की समय सीमा: जिन शिक्षकों ने TET पास नहीं किया है, उन्हें दो साल के भीतर परीक्षा पास करनी होगी, वरना अनिवार्य सेवानिवृत्ति लेनी होगी
- सेवानिवृत्ति के करीब शिक्षकों को छूट: जिन शिक्षकों की नौकरी में पांच साल से कम समय बचा है, उन्हें TET से छूट मिली है
- पदोन्नति के लिए TET जरूरी: लेकिन अगर छूट प्राप्त शिक्षक भी पदोन्नति चाहते हैं तो उन्हें TET पास करना होगा
- अल्पसंख्यक स्कूलों की स्थिति अलग: अल्पसंख्यक स्कूलों पर यह नियम तब तक लागू नहीं होगा जब तक बड़ी पीठ फैसला नहीं ले लेती
राज्यों की चिंता और समीक्षा याचिकाएं
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और केरल जैसे राज्यों ने समीक्षा याचिकाएं दायर की हैं। तमिलनाडु के स्कूल शिक्षा मंत्री अनबिल महेश पोय्यामोझी के अनुसार, राज्य में लगभग 1.7 लाख सरकारी शिक्षक इस फैसले से प्रभावित होंगे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी बेसिक शिक्षा विभाग को समीक्षा याचिका दायर करने का निर्देश दिया है।
राज्यों की मुख्य दलीलें
- अनुभवी शिक्षकों की योग्यता और सेवा को नजरअंदाज करना उचित नहीं
- 45-55 आयु वर्ग के शिक्षकों को परीक्षा पास करने में कठिनाई
- खाली कक्षाओं का संकट पैदा हो सकता है
- समय-समय पर सरकार द्वारा दिया गया प्रशिक्षण पर्याप्त योग्यता प्रमाण है
अल्पसंख्यक संस्थानों का मुद्दा
नई याचिका में अल्पसंख्यक संस्थानों को RTE अधिनियम के दायरे से बाहर रखने वाली धारा 1(4) और 1(5) को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता नितिन उपाध्याय का तर्क है कि इन प्रावधानों से संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 21 और 21A का उल्लंघन होता है। याचिका में कहा गया है कि TET को सभी स्कूलों पर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट मामले की शुद्धता पर भी सवाल उठाया था, जिसमें अल्पसंख्यक स्कूलों को RTE अधिनियम से बाहर रखा गया था। अब बड़ी पीठ यह तय करेगी कि क्या अल्पसंख्यक संस्थानों को भी TET Mandatory करना चाहिए।
आगे क्या होगा?
अब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यह तय करेंगे कि क्या इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजा जाए। अगर बड़ी पीठ गठित होती है, तो यह TET Mandatory, अल्पसंख्यक संस्थानों की स्थिति और शिक्षा के अधिकार के दायरे पर व्यापक फैसला देगी। यह मामला भारत में शिक्षा की गुणवत्ता और 51 लाख से अधिक शिक्षकों के करियर को प्रभावित करने वाला है।
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